Dunagiri Temple Uttarakhand: अल्मोड़ा जनपद के द्वाराहाट में स्थित है यह मंदिर, गुरु द्रोणाचार्य के नाम से जाना जाता है द्रोणागिरी नाम से..
Dunagiri Temple Uttarakhand
दूनागिरी मंदिर हिंदुओं का एक प्रसिद्ध मंदिर है। जो उत्तराखंड के अल्मोडा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र से लगभग 15.1 किलोमीटर की दूरी पर द्रोण पर्वत की चोटी पर स्थित है। बता दें कि मां दूनागिरि मंदिर को ‘द्रोणागिरि’ के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि मान्यता है कि इस पर्वत पर पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने तपस्या की थी इसलिए तपस्या के कारण इसका नाम द्रोणागिरी के नाम पर रखा गया था। दूनागिरी मंदिर का नाम उत्तराखंड के सबसे प्राचीन और सिद्ध शक्तिपीठ मंदिरों में जाना जाता है। मां दूनागिरी का यह मंदिर उत्तराखंड के कुमाऊं में वैष्णो देवी मंदिर के बाद दूसरा वैष्णो शक्तिपीठ है।
यह भी पढ़ें- क्या आपको पता है देवभूमि उत्तराखंड में भी है एक अयोध्या जिसका है अपना पौराणिक महत्व…??
Dunagiri Mandir Dwarahat
बता दें कि दूनागिरी मंदिर पहाड़ की चोटी पर समुद्र तल से 8,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां सड़क से लगभग 365 सीढ़ियों से होकर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। सीढ़ियों की ऊंचाई छोटी और लंबी होने के कारण आसानी से चढ़ाई की जा सकती है।पूरे रास्ते में हजारों घंटियाँ लटकी हुई हैं, जो लगभग एक जैसी हैं। दूनागिरि मंदिर का रखरखाव का कार्य ‘आदि शक्ति माँ दूनागिरि मंदिर ट्रस्ट’ द्वारा किया जाता है। दूनागिरी मंदिर में ट्रस्ट द्वारा प्रतिदिन भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। दूनागिरी मंदिर से हिमालय पर्वत की पूरी श्रृंखला का नजारा भी देखने को मिलता है।
यह भी पढ़ें- उत्तराखंड: सुरकंडा देवी का इतिहास है बेहद रोचक जानिए कुछ विशेष तथ्य…
बताते चलें कि दूनागिरी मंदिर में कोई मूर्ति स्थापित नहीं है बल्कि यहां प्राकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिंडों की पूजा माता भगवती के रूप में की जाती है। दूनागिरी मंदिर में अखंड ज्योति मंदिर की एक विशेष विशेषता है। दूनागिरी माता के वैष्णवी रूप होने के कारण इस स्थान पर किसी भी प्रकार की बलि नहीं दी जाती है। यहां तक कि मंदिर में प्रसाद के तौर पर चढ़ाए गए नारियल को भी मंदिर परिसर में नहीं तोड़ा जाता है।ऐसी मान्यता है कि जब त्रेतायुग में रामायण के युद्ध में मेघनाथ ने लक्ष्मण को शक्ति से मारा था तब सुसान वेद्य ने हनुमान जी से द्रोणाचल नामक पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा, हनुमान जी पूरे द्रोणाचल पर्वत को ले जा रहे थे और पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा उन पर गिरा और उसके बाद इस स्थान पर दूनागिरी का मंदिर बनाया गया। उस समय से आज भी यहां कई प्रकार की जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं कत्यूरी शासक धर्मदेव ने 1318 ई. में मंदिर की स्थापना की और दुर्गा मूर्ति स्थापित की। देवी के मंदिर से पहले भगवान हनुमान, श्री गणेश और भैरव जी का मंदिर है। हिमालय गजेटेरियन ईटी एडकिंशन के लेख के अनुसार, मंदिर के प्रमाण 1181 शिलालेखों में मिलते हैं।
यह भी पढ़ें- उत्तराखण्ड में विराजमान हैं भोलेनाथ का एक ऐसा मंदिर जहां कभी पानी में बनती थीं पूड़ियां
देवी पुराण के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने युद्ध में विजय प्राप्त की थी और द्रौपदी ने सतीत्व की रक्षा के लिए दूनागिरी मंदिर में मां दुर्गा की पूजा की थी। दूनागिरी का उल्लेख स्कंद पुराण के मानस खंड में मिलता है। दूनागिरी देवी को महामाया हरप्रिया के रूप में वर्णित किया गया है (मानसखंड, 36.17-18)। स्कंदपुराण के मानसखंड में दूनागिरि को ब्रह्म-पर्वत की उपाधि दी गई है। दूनागिरि देवी मंदिर में सभी त्यौहार मनाये जाते हैं, विशेषकर दुर्गा पूजा के त्यौहार में, नवरात्रि के त्यौहार पर विशेष पूजा होती है। इस दिन मंदिर को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण भक्तों के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।
यह भी पढ़ें- उत्तराखण्ड में विराजमान हैं एक ऐसा हनुमान धाम जहां पेड़ भी जपते हैं राम का नाम