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उत्तराखंड में मां चन्द्रबदनी का ऐसा शक्तिपीठ जहां गिरा था मां सती का धड़

Chandrabadani Devi Temple Uttarakhand

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उत्तराखंड में मां चन्द्रबदनी का ऐसा शक्तिपीठ जहां गिरा था मां सती का धड़

Chandrabadani Devi Temple Uttarakhand: टिहरी जिले में स्थित है भगवती दुर्गा का यह प्राचीन मंदिर, Chandrakoot पर्वत पर है स्थित…

Chandrabadani Devi Temple Uttarakhand
उत्तराखंड सदियों से ही अलौकिक रहस्यों और चमत्कारों की भूमि है जहां हर कदम पर कुछ चमत्कारिक और रहस्यों के बारे में सुनने को मिलता है। उत्तर में बसी यहां पावन भूमि देवी देवताओं के लिए विख्यात है। इसमें देवी देवताओं के कई ऐसे मंदिर हैं जो ना भक्तों के बीच प्रसिद्ध है बल्कि अपनी चमत्कारों और रहस्य के कारण ऋषि मुनियों से लेकर वैज्ञानिकों तक को हैरान कर देने वाले रहस्यों से भरे हैं। इन्हीं मंदिरों में से आज हम आपको उत्तराखंड के टिहरी जिले में स्थित माता दुर्गा भगवती का एक ऐसा अलौकिक स्वरूप मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो कि माता सती के 52 शक्तिपीठों में से एक है और साथ ही एक ऐसा चमत्कारिक मंदिर है जो की भक्तों के उद्धार के साथ-साथ कई प्रकार के चमत्कार और सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जाना जाता है।
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चंद्रबदनी मंदिर (Chandrabadani Temple):-

चंद्रबदनी मंदिर टिहरी जिले में स्थित भगवती दुर्गा का एक प्राचीन मंदिर और माता सती के 52 शक्तिपीठों में से एक है। जो कि Chandrakoot पर्वत पर स्थित है। यहां मंदिर भगवती दुर्गा के काली रूप को समर्पित है जहां माता की पूजा काले पत्थर में जड़ा एक श्री यंत्र(Shree Yantra) के रूप में की जाती है।
क्यों पड़ा चंद्रबदनी नाम(Why was it named Chandrabadni?): मान्यताओं के अनुसार जहां पर वर्तमान में चंद्र बदनी (Chandrabadani Devi) मंदिर है। अनादिकाल में इस स्थान पर भगवान शिव की अर्धांगिनी माता सती का गर्दन से नीचे का भाग यानी बदन भाग गिरा था। इस कारण इस मंदिर का नाम चंद्र बदनी पड़ा। चूंकि मंदिर चंद्रकूट पर्वत पर है तब से यह मंदिर चंद्र बदनी नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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चंद्रबदनी मंदिर की कहानी (Story of Chandrabadni Temple):-

पौराणिक कथाओं और प्राचीन अभिलेखों के आधार पर बात करें तो इस मंदिर की कहानी माता सती से जुड़ी हुई है। संपूर्ण विश्व में जब भगवान भोलेनाथ और माता सती का वर्चस्व था और माता सती ने भगवान शिव से विवाह किया था। तब माता सती के पिता दक्ष द्वारा एक यज्ञ का आयोजन किया गया था जिसमें सभी देवी देवता निमंत्रित थे। मगर भगवान शिव और माता सती उसमें आमंत्रित नहीं थी। जिससे क्रोधित होकर माता ने पिता दक्ष के यज्ञ में पहुंचकर प्राणों की आहुति दी थी। उनकी देह त्याग से जब भगवान भोलेनाथ प्रचंड रूप में आए थे तो विष्णु द्वारा उनका यह दुख देखा नहीं नहीं गया जिस कारण उन्होंने माता सती के 52 भाग किए थे। माता सती के मृत देह के भाग धरती पर जिस जगह गिरे उस-उस जगह पर माता सती का मंदिर बना। इन्हीं भागों में से एक भाग बदन का भाग चंद्रकूट पर्वत पर गिरा था। तब से अब तक इस स्थान पर माता सती की बदन भाग की पूजा की जाती है। इस मंदिर में भगवती का कोई भी मूर्त रूप नहीं है। जिस कारण एक कला श्री यंत्र की पूजा पुजारी द्वारा आंखों पर पट्टी बांध कर की जाती है। क्योंकि इस श्री यंत्र का तेज इतना अधिक है कि कोई भी इसे नग्न आंखों से नहीं देख सकता।
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मंदिर की दूरी(Distance To Temple)

यह मंदिर देवप्रयाग टिहरी मोटर मार्ग के बीच स्थित है। जो की देवप्रयाग से सिर्फ 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर जाने के लिए आपको मुख्य मार्ग से 1 किलोमीटर ऊपर पैदल यात्रा करनी होती है। जहां से प्रकृति के सुंदर मनमोहक नजारों के साथ ही सुरकंडा देवी, नीलकंठ और दूर-दूर तक हिमाचल की पहाड़ियां और चोटियों का सुंदर नजारा देखने को मिलता हैं जिससे यात्रा और भी रोमांचक हो जाती है।
मंदिर का रहस्य (Secret of temple): भगवती का यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए हर साल और प्रत्येक दिन खुला रहता है। आप यहां किसी भी वर्ष, महीना और किसी भी दिन, समय आ सकते हो। नवरात्रों में यहां पर विशेष रूप से भीड़ लगी रहती है क्योंकि नवरात्रों में यहां पर माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। हर साल अप्रैल महीने में इस मंदिर में एक मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं।
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मंदिर में होने वाले चमत्कार (Miracles Happening In The Temple)

मंदिर की मान्यता है कि भगवती दुर्गा इस मंदिर से सच्चे मन से आए हुए किसी भी श्रद्धालुओं को खाली हाथ नहीं जाने देती है। और कोई भी भक्त जो जीवन से थका और निराश हो चुका हो अगर इस भगवती के पावन दरबार में कुछ भी मांगने आता है तो भगवती उसके कष्ट हर लेती है। मंदिर में सुबह से लेकर शाम तक पूजा पाठ मंत्र उच्चारण और ढोल नगाड़े बजते रहते हैं जिससे मंदिर परिसर में अलग ही देव और दिव्यता का एहसास होता है। भगवती चंद्र बदनी अपने भक्तों को देव डोली में अवतार लेकर दर्शन देती है और उनका कष्ट भी बताती है। इस प्रकार भगवती का यह मंदिर काफी चमत्कारओं और आकर्षक रहस्य को समेटे हुए है। कहां जाता है कि इस मंदिर में आज भी माता विचरण करती है और इस मंदिर में रात के समय अप्सराओं और गंधर्वों द्वारा नृत्य किया जाता है। कहते हैं अगर आपकी कोई ऐसी इच्छा है जो आपको लगता है कि संभव नहीं है तो आप इस मंदिर में आकर मनोती यानी की मन इच्छा कहकर चले जाते हो तो भविष्य में आपकी वह इच्छा पूरी हो जाती है। साथ ही इस मंदिर में सच्चे मन से निरहार रहकर व्रत करने वाले साधु संतु और भक्तों को सिद्धियां भी प्राप्त होती है।

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सुनील खर्कवाल लंबे समय से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं और संपादकीय क्षेत्र में अपनी एक विशेष पहचान रखते हैं।

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