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कुमाऊं के सिद्ध पीठों में एक और हल्द्वानी के रक्षक कालू सिद्ध बाबा से जुड़े कुछ विशेष तथ्य

kalu sai mandir history

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कुमाऊं के सिद्ध पीठों में एक और हल्द्वानी के रक्षक कालू सिद्ध बाबा से जुड़े कुछ विशेष तथ्य

kalu sai mandir history: कालू सिद्ध बाबा को माना जाता है हल्द्वानी का रक्षक, करीब 200 साल पुराना है मंदिर का इतिहास….

kalu sai mandir history
विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखण्ड प्रदेश को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। यह पावन धरा न केवल ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है बल्कि देवी देवताओं की आवास स्थली भी रही है। पग-पग पर स्थित देवी देवताओं के नाम, लोग देवताओं के थान आज भी इस बात का जीता-जागता उदाहरण है। वैसे तो उत्तराखंड की इस पवित्र भूमि में क‌ई शक्तिपीठ स्थापित है लेकिन आज हम आपको राज्य के नैनीताल जिले के हल्द्वानी शहर में स्थित कालू सिद्ध बाबा मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु शीश नवाने आते रहते है। इस मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए गुड़ की भेली चढ़ाई जाती है। इस मंदिर में बजरंगबली के साथ ही शनि देव, मां दुर्गा और भगवान विष्णु के अतिरिक्त अन्य देवी देवताओं की मुर्तियां भी स्थापित है।
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स्थानीय मान्यताओं में कालू सिद्ध बाबा को हल्द्वानी का रक्षक माना गया है। इस मंदिर को कालू साई मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। बता दें कि इस मंदिर में मनोकामना पूर्ति के लिए न केवल श्रृद्धालुओं द्वारा गुड़ की भेली चढ़ाने की परम्परा वर्षों से चली आ रही है बल्कि यहां लोग काली चुन्नी एवं घंटियां भी चढ़ाते हैं। मंदिर में बड़ी संख्या में चढ़ाई गई चुन्नी एवं घंटियां कालू सिद्ध बाबा मंदिर पर लोगों की अथाह आस्था का प्रत्यक्ष प्रमाण है। बात इस मंदिर के इतिहास की करें तो स्थानीय लोगों के मुताबिक इस मंदिर का इतिहास करीब 200 साल पुराना है। कहा जाता है कि सदियों पहले जब कालू सिद्ध बाबा हल्द्वानी पहुंचे थे तो उन्होंने पीपल के पेड़ के नीचे एक मठ की स्थापना कर अपनी तपस्या साधना शुरू की थी। धीरे धीरे यही स्थान कालू सिद्ध बाबा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया है। बाबा के चमत्कारों से आज यहां श्रृद्धालुओं की भारी भीड़ लगी रहती है। मंदिर में गुड़ चढ़ाने की परम्परा के बारे में स्थानीय लोगों का कहना है कि जब कालू सिद्ध बाबा हल्द्वानी आए थे उस समय यहां गुड़ एवं गन्ने का खूब कारोबार हुआ करता था। इस रास्ते से गुजरने वाले व्यापारी बाबा को गुड़ का भोग लगाते थे। बाबा को भी भक्तों द्वारा दिया गया यह गुड़ काफी पसंद था, इसी कारण कालू सिद्ध बाबा मंदिर में गुड़ चढ़ाने की परम्परा शुरू हो गई।

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सुनील खर्कवाल लंबे समय से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं और संपादकीय क्षेत्र में अपनी एक विशेष पहचान रखते हैं।

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