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उत्तराखंड भू कानून और मूल निवास से जुड़े ये कुछ विशेष तथ्य आपको भी जान लेने चाहिए…

Uttarakhand bhu kanoon

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उत्तराखंड भू कानून और मूल निवास से जुड़े ये कुछ विशेष तथ्य आपको भी जान लेने चाहिए…

Uttarakhand Bhu kanoon News: मूल निवास 1950 एवं सशक्त भू कानून की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं उत्तराखंड के युवा, लोक कलाकारों के साथ ही गणमान्य लोगों का मिल रहा सहयोग…

Uttarakhand Bhu kanoon News
कुछ समय पहले यानी 24 December 2023 को उत्तराखंड में एक बड़ा प्रदर्शन हुआ था। जिसमे उत्तराखंड के लोगों के मन में सरकार के प्रति इतना रोष और आक्रोश था कि लोग सड़कों पर उतर आए थे। एक लंबे अंतराल के बाद उत्तराखंड के लोग सड़कों पर प्रदर्शन के लिए उतरे थे और इसके लिए राजधानी देहरादून में 24 दिसंबर को युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक सब ने मिलकर प्रदर्शन किया था। तो चलिए आज हम आपको बताएंगे की आखिर क्या थे ये मुद्दे और इन मुद्दों से उत्तराखंड राज्य को क्या फायदा होगा?
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क्यों हो रही उत्तराखंड में भू-कानून की मांग(Why is there demand for land law in Uttarakhand?)

उत्तराखंड एक हिमालय और पहाड़ी राज्य है। जहां की भूमि को लेकर कोई सख्त भू कानून नहीं है और इस राज्य की भूमि को बाहरी राज्यों के लोग आसानी से अपने काम के लिए खरीद सकते हैं। हमेशा से कई सरकारे आई लेकिन भू कानून को लेकर किसी ने भी कोई सशक्त कानून नहीं बनाया। जिस कारण लोगों में आक्रोश बढ़ गया क्योंकि उत्तराखंड में स्थित जमीन को बाहरी लोग आसानी से खरीद रहे थे जिससे यहां के लोगों को अपना अस्तित्व और संस्कृति धीरे-धीरे खतरे में नजर आ रही थी। साथ ही बाहरी लोगों के बसने से देवभूमि धीरे धीरे कलंकित हो रही थी। संस्कृति को खतरे में देख यहां के लोगों ने सरकार से एक सशक्त भू कानून लागू करने की मांग रखी ताकि बाहरी राज्य के कोई भी लोग उत्तराखंड में भूमि ना खरीद पाए।
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क्यों हो रही उत्तराखंड में मूल निवास 1950 की मांग? (Why is there a demand for Domicile of Origin 1950 in Uttarakhand?)

उत्तर में बसा उत्तराखंड एक हिमालई और पहाड़ी राज्य है। जो 9 नवंबर सन 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग हुआ था। सन् 1950 में जब हमारा देश भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ था तब उस समय भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने नए भारत के अधिवासन के संबंध में एक प्रेसीडेंशियल नोटिफिकेशन जारी किया था। जिसके मुताबिक भारत का जो भी निवासी 1950 से पहले और 1950 तक जिस भी राज्य में रहा है वो वहीं का मूल निवासी कहलाएगा। लेकिन सन 2000 में जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश से अलग हुआ तो तब मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी की अगुवाई में बनी भाजपा सरकार ने राज्य में मूल निवास और स्थाई निवास को एक मानते हुए इसकी समय सीमा 1950 से 1985 कर दी। जबकि पूरे देश में यह 1950 ही थी। इसके बाद से राज्य में मूल निवास की जगह स्थाई निवास को मान्यता दी जाने लगी। मगर उत्तराखंड में रह रही मूल निवासियों द्वारा मूल निवास की मांग लगातार बनी रही। इसके बाद 2010 में मूल निवास संबंधी मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने देश में एक ही अधिवास व्यवस्था(Domicile system) कायम करते हुए 1950 के प्रेसिडेंशियल नोटिफिकेशन को ही मान्य रखा।
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मगर 2012 में जब कांग्रेस की सरकार थी तब 1950 लागू करने की मांग पर उत्तराखंड हाई कोर्ट में फैसला सुनाया गया जिसके मुताबिक 9 नवंबर 2000 राज्य गठन के दिन से जो भी व्यक्ति उत्तराखंड की सीमा में रहा हो वही यहां का मूल निवासी कहलाएगा और इस समय स्थित कांग्रेस सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को स्वीकार कर लिया। इसके बाद से उत्तराखंड में लगातार 1950 मूल निवास की मांग उठने लगी। क्योंकि तब सवाल ये उठने लगा था कि अगर उत्तराखंड में 2000 से रह रहे लोग मूल निवासी कहलाएंगे तो फिर उससे पहले की लोग कहां जाएंगे? इसके बाद तो मूल निवासियों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगेगा। क्योंकि सन 2000 के बाद उत्तराखंड में कोई भी और कहीं का भी उत्तराखंड निवासी बन चुका था। जिससे मूल निवासियों को अपने अस्तित्व में खतरा नजर आने लगा। और यहीं कारण था कि उत्तराखंड में लगातार भू- कानून और मूल निवास जैसे मुद्दों की मांग उठने लगी और 2023 में यह आग इतनी उठी की लोगों ने सरकार के खिलाफ जमकर विद्रोह किया उसके बाद सरकार ने भी लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए भू- कानून पर अपना फैसला सुनाया।
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राज्य में “भू- कानून और मूल निवास” लागू के फायदे (Benefits of implementing land law and original residence in the state)

राज्य में भू कानून और मूल निवास (Land Law Original Residence) से एक तो राज्य में मूल निवासियों का अस्तित्व बच जाएगा साथ ही यहां की संस्कृति, भूमि, पहाड़, जंगल की हकदार यही के लोग रहेंगे ना की बाहरी राज्यों के लोग। साथ ही राज्य के युवाओं को रोजगार अधिक मात्रा में मिल सकेगा साथ ही शिक्षा में भी प्रतिशतता मिल सकेगा।

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सुनील खर्कवाल लंबे समय से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं और संपादकीय क्षेत्र में अपनी एक विशेष पहचान रखते हैं।

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