Devprayag Sangam Story Hindi: अलकनंदा और भागीरथी संगम के पर स्थित है देवप्रयाग, पुराणों में भी आता है जिक्र, कहा जाता है उत्तराखंड की अयोध्या….
Devprayag Sangam Story Hindi
इन दिनों सारा देश प्रदेश अयोध्यामय हो रखा है। जहां देखो अयोध्या नगरी और राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर बातें हों रही है। बातें जब भगवान राम और अयोध्या नगरी की हो रही है तो आज हम भी आपको उस शहर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे उत्तराखण्ड की अयोध्या के रूप में पहचाना जाता है। जी हां… बात हो रही है उत्तराखंड में मौजूद देवप्रयाग की, जहां अलकनंदा और भागीरथी संगम के बाद बनने वाली गंगा नदी देश विदेशों में अपनी एक विशेष पहचान रखती है। ऋषिकेश बद्रीनाथ हाइवे किनारे टिहरी जिले में बसे इस शहर के बारे में अनेक मान्यताएं और पौराणिक कहानियां मौजूद हैं। इसका सर्वाधिक जिक्र स्कंद पुराण में मिलता है, जिसमें कहा गया है कि इस स्थान का देवप्रयाग नामकरण, स्वयं भगवान राम ने किया था। उस दौरान वह लंकापति रावण के वध के बाद ब्रह्म हत्या का प्रायश्चित करने यहां आए थे। इसी दौरान उन्होंने ऋषि विश्वामित्र के शाप से मकरी बनी किन्नरी पुष्पमाला का भी उद्धार किया था। भगवान राम ने यहां अपने आराध्य भोलेनाथ का आदिविश्वेश्वर शिवलिंग भी स्थापित किया था।
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अन्य पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अयोध्या के महाराजा दशरथ की पुत्री शांता ने देवप्रयाग में ही अपनी तपस्या पूर्ण कर बाह्मणत्व प्राप्त किया था। जिसके उपरांत उन्होंने ऋषि श्रृंगी से विवाह किया था। जिसके बाद से भगवान शिव के आशीर्वाद से वह इस जगह पर वर्तमान में भी नदी के रूप में प्रवाहित होती है। इस नदी के सामने ही ऋषि श्रृंगी की गुफा आज भी मौजूद है। यह भी माना जाता है कि यहां ऋषि वशिष्ठ ने भी तपस्या की थी। अलकनंदा और भागीरथी के संगम तट पर स्थित वशिष्ठ गुफा और वशिष्ठ कुंड इन मान्यताओं की सार्थकता को आज भी सिद्ध करते हैं। पुराणों के मुताबिक देवप्रयाग गृद्धाचंल पर्वत पर स्थित है, इस पर्वत को पुराणों में जटायु की तपस्थली के नाम से भी संबोधित किया गया है। भगवान राम की यहां आने के प्रमाण भागीरथी नदी के निकट स्थित हनुमान जी की लंबी सुरंग एवं सुग्रीव गुफा से भी मिलते हैं। कहा जाता है कि सतयुग में देवशर्मा नामक ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेतायुग में इस स्थान पर आने और उनके नाम से ही इस स्थान का नामकरण देवप्रयाग करने का वर ऋषि देवशर्मा को दिया था।
देवप्रयाग में स्थित विशाल दशरथाचंल पर्वत के बारे में पुराणों में कहा गया है कि इस स्थान पर राजा दशरथ विराजमान होते थे, पर्वत की चोटी पर स्थित पत्थर का राज सिंहासन यहां आज भी स्थित है, जो इस पौराणिक मान्यताओं की तस्दीक करता है। इतना ही नहीं इसी स्थान पर मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की तेजस्वी कांवड़ के दो चिन्ह आज भी मौजूद है। इसके अतिरिक्त भगवान राम के पूर्वज राजा पृथु के नाम से पृथुधार भी है है। आपको बता दें कि महाराज पृथु के नाम से ही हमारी धरती को पृथ्वी के नाम से जाना जाता है। देवप्रयाग में रामकुंड भी है, जहां भगवान श्री राम की चरण पादुका शिला स्थित है, इसके निकट ही परशुराम की तपस्थली भी मौजूद है
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