Rawat Caste in uttarakhand: उत्तराखंड में रावत जाति का इतिहास है बड़ा गौरवशाली जानिए कुछ रोचक तथ्य
Rawat Caste in uttarakhand: उत्तराखंड मे विभिन्न जाति, धर्म के लोग निवास करते हैं उत्तराखंड मे कुछ ऐसी विशेष जातिया भी है जिनका नाम आपने सुना भी होगा जैसे – नेगी, बिष्ट, असवाल, पंवार, रावत ये सभी जातियाँ खुद मे बहुत विशेष है और इनके साथ ही ब्राह्मण जाति के बारे मे भी सुना ही होगा| उत्तराखंड में राजपूतो का अपना इतिहास रहा है और साथ ही ब्राह्मणों का अपना एक अलग इतिहास रहा है| लेकिन आज हम जिस जाति की बात करने जा रहे वो जाति है रावत चलिए आज आपको रावत जाति के गौरवशाली इतिहास के बारे मे बताते है कि आखिर क्या इतिहास रहा हैं रावत जाति का रावत जिस शब्द को अगर तोड़ा भी जाए तो भी ये खुद मे पूर्ण लगता हैं| रावत जाति का इतिहास गहरा है और वे विभिन्न ऐतिहासिक और सांस्कृतिक समृद्धि के साक्षात्कार किए हैं। कुछ स्थानों पर इसे क्षत्रिय वर्ण का होने का दावा किया गया है, जबकि कुछ स्थानों पर इसे अन्य वर्णों से जुड़ा माना जाता है। रावत जाति के लोग अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को महत्वपूर्ण मानते हैं और इसकी संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं।
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रा – राजपुताना
व – मतलब वीर
त – मतलब तलवार
रावत इसका सीधा मतलब है कि बलशाली, पराक्रमी, क्षत्रिय शूरवीर जो तलवार के धनी होते है और तलवारबाजी मे इनकी कला निपूर्ण होती है|वे रावत- राजपूत कहलाते हैं…ये रावतों को एक पदवी मिली है, जो 10 हाथियो की सेना से मुकाबला करने वाले राजपूत शूरवीर योद्धा को प्रदान की जाती थी अर्थात ये अकेले ही 100 लोगों जितना जोश रखते है। इस पदवी का मतलब राजपुत्र,प्रधान, प्रतापी शूरवीर, पराक्रमी योद्धा होता है। रावत की पदवी की गरिमा को किसी ने इस तरह से बखान किया है।
’सौ नरों एक सूरमा, सौ शूरों एक सामन्त, सौ सामन्त के बराबर होता है, एक रावत राजपूत। इतिहासकार बताते हैं कि रावत शब्द राजपुत्र का ही अपभ्रंश है । राजपूत काल मे रावत जाति न होकर चौहान, गहलौत, परमार,सिसोदिया, पवाँर, गहड़वाल आदि राजघरानो में पराक्रमी शासक वर्ग की पदवी थी, जो दरबार में सम्मान और बड़प्पन का सूचक होती थी।
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इन राजघरानो में रावत पदवी से सम्मानित शूरवीर रावत-राजपूत कहलाते थे। ये रावत ही थे जो क्षत्रियों में अपनी विशेष पहचान रखते थे. कहा जाता है कि राजस्थान में रावत की पदवी अनूपवंशीय बरड़ राजपूतों में सबसे पहले वीहल चौहान राजपूत सरदार को मिली थी..उनके पराक्रम पर मेवाड़ दरबार में रावल जैतसी द्वारा ये उपाधि दी गई थी। इसके लिए उन्हें 10 गांवो का गढ़बौर यानी चारभुजा राज्य दिया गया था। रावत-राजपूत स्वाभिमान के धनी रहे है। रावत-राजपूतों ने अपना सिर कटाना स्वीकार कर लिया पर पराधीनता कभी भी पसन्द नहीं की, जिसका एक गौरवमयी इतिहास रहा है।
फ्रांस के प्राकृतिक वेता ने लिखी ये बात: 1832 में फ्रांस के प्राकृतिक वेता मि. जेक्मेन्ट ने रावत राजपूतों के लिए लिखा था कि ” No Rajput Chief No Mughal Emperor had ever been able to sub-due them, Merwara always remained independant.”
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उत्तराखंड में Rawat cast UP के राजपूताना परिवारों से आए:-
इसका मतलब है कि रावतों को न तो कोई राजपूत राजा अपने वश में कर पाया न ही कोईॉ मुगल सम्राट…इन राजपूतों का राज्य हमेशा आज़ाद रहा। कहा जाता है कि उत्तराखंड में rawat cast UP के राजपूताना परिवारों से ही आए थे। नैन सिंह रावत, जनरल बिपिन रावत, त्रिवेंद्र सिंह रावत जैसे ये बड़े नाम हैं, जिन्होंने अपने तेज से हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित किया है।
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गढ़वाल के 52 गढ़ों में से कई गढ़ों पर रावत जाति का रहा राज:-
गढ़वाल के 52 गढ़ों में से कई गढ़ों पर Rawat cast का राज रहा है। मुंगरा गढ़ की बात करें तो रवाई स्थित ये गढ़ रावत जाति का था और यहां रौतेले रहते थे। इसके अलावा रामी गढ़ पर भी रावतों का ही राज रहा था। बिराल्टा गढ़ भी एक ऐसा गढ़ है जहां रावत जाति के राजाओं ने राज किया था। रावत जाति के इस गढ़ का अंतिम थोकदार भूपसिंह था। ये जौनपुर में था। इसके अलावा कांडा गढ़ जो कि रावतस्यूं में था। इस पर भी रावत जाति का था।
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