Ghvid Sankranti in uttarakhand festival: गढ़वाल मंडल में ज्येष्ठ संक्रांति को मनाया जाता है यह लोकपर्व, देवी देवताओं को नई फसल (अनाज) चढ़ाने को है समर्पित….
Ghvid Sankranti in uttarakhand festival: हिंदू पंचांग के हिसाब से महीने के पहले दिन को संक्रांति कहा जाता है। इस दिन सूर्य देव एक राशि को छोड़कर दूसरी राशि में प्रवेश करते है। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग प्रत्येक माह की संक्रांति को कोई ना कोई लोकपर्व मनाया जाता है। मई माह में जब सूर्य वृषभ राशि में प्रवेश करते हैं तो उसी दिन से हिंदू कैलेंडर के तीसरे महीने अर्थात ज्येष्ठ मास का प्रारंभ होता है और इसी दिन ज्येष्ठ संक्रांति मनाई जाती है। बात उत्तराखंड की करें तो उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में इस दिन को घ्वीड़ संक्रांति ,घोल्ड संक्रांति , घोल्ड त्योहार के रूप में जाना जाता है। उत्तराखण्ड के अनेक लोकपर्वों की तरह यह त्योहार भी उत्तराखंड के प्रकृति को समर्पित है। इस दिन रवि की फसलों गेंहू और मसूर के पकवान (घवीड) बनाकर पहली बार देवी देवताओं को समर्पित किया जाता है। इस वर्ष यह त्यौहार मंगलवार 13 मई 2025 को मनाया जाएगा क्योंकि इसी दिन से ज्येष्ठ मास का प्रारंभ हो रहा है।

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Ghvid Sankranti garhwal uttarakhand folk festival in May month कुल मिलाकर ज्येष्ठ संक्रांति के दिन मनाया जाने वाला पहाड़ का यह लोकपर्व भी नए अनाज को देवी देवताओं को चढ़ाने का त्योहार है। इस दिन गढ़वाल में नए अनाज (रवि की फसल, गेंहू और मसूर ) के घवीड बनाकर अनाज का पहला भोग पितरों एवं देवताओं को चढ़ा कर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। जिसके बाद इन पकवानों को बच्चों को खेलने एवं खाने को देते हैं। इस दिन एक विशिष्ट पकवान घविड (जंगली भेड़ ) के रूप में बनाया जाता है। जिसके लिए सर्वप्रथम गेहूं की नई फसल से निर्मित आटे को गुड़ के पानी में गूंथकर उसे घ्वीड़ ( पहाड़ी भेड़, जंगली भेड़ ) के आकार में बना लिया जाता है। जिसके बाद आटे से निर्मित इस आकृति में मसूर की दाल की नई फसल के दाने लगाकर आँखों का आकार दिया जाता है जिसके बाद उन घिव्ड, घवीड को गर्म सरसों के तेल में तल लेते हैं। अर्थात जिस प्रकार कुमाऊं मंडल में आटे से मीठा पकवान घुघुतिया (घुघुते) बनाए जाते हैं उसी प्रकार ज्येष्ठ संक्रांति पर गढ़वाल मंडल में नई फसल से घ्वीड़ या घवीड बनाए जाते हैं।
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Ghold Sangrand in uttarakhand folk festival garhwal आपको बता दें कि घुघुते की तरह ही घवीड़ को भी न केवल छोटे बडे़ एवं बच्चे खाते हैं बल्कि इससे बच्चे खेलते भी हैं । इसकी माला बनाते हैं और उसे किंगोड़ा (किलमोड़ा) की लकड़ी से तलवार बनाकर मारने काटने का खेल खेलते हैं। इस दिन घवीड के साथ अन्य पकवान भी बनाए जाते हैं। जैसे पूरी कचोरी। इतना ही नहीं फूल संक्रांति के बचे हुए चावल के पापड़ (पापड़ी) भी तली जाती है और स्वांले-पकौड़े भी बना लिए जाते हैं। आपको बता दें कि घवीड़ जिसे घुरड़ या घूरल के नाम से भी जाना जाता है, जंगली बकरी की एक प्रजाति है, यह हिरण से बिल्कुल भिन्न होती है। रवी के नवधान्य देवी देवताओं को समर्पित करने का यह त्यौहार, उत्तराखण्ड के अन्य लोकपर्वों की तरह अब विलुप्त सा होने लगा है क्योंकि पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखण्ड के गांवों में ना ही खेती करने वाले लोग बचे हैं और ना ही त्यौहारों की शोभा बढ़ाने वाले बच्चों की किलकारियां ही गूंजती है।

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