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Igas Bagwal date 2025: कब मनाया जाएगा इगास बग्वाल बूढ़ी दीपावली बल्द त्यौहार

Uttarakhand Igas bagwal budi diwali bald tyohar date 2 November 2025 best wishes hindi image
सांकेतिक फोटो Igas bagwal best wishes

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उत्तराखंड

Igas Bagwal date 2025: कब मनाया जाएगा इगास बग्वाल बूढ़ी दीपावली बल्द त्यौहार

Uttarakhand Igas bagwal budi diwali bald tyohar date 2 November 2025 best wishes hindi image: उत्तराखंड में इगास की रौनक: लोकपरंपरा, आस्था और वीरता से जुड़ा त्योहार, जानिए क्यों मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली, क्यों कहां जाता है इसे बल्द त्यार ( बल्द त्यौहार) इस बार 2 नवंबर को मनाया जाएगा बग्वाल बूढ़ी दिवाली इगास बल्द त्यौहार

Uttarakhand Igas bagwal budi diwali bald tyohar date 2 November 2025 best wishes hindi image: देवभूमि उत्तराखंड अपनी सांस्कृतिक विरासत और लोक परंपराओं के लिए देशभर में विशेष पहचान रखता है। यहां हर पर्व सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं होता, बल्कि इसके पीछे कोई ऐतिहासिक गाथा और सामाजिक संदेश भी छिपा होता है। इन्हीं में से एक है इगास बग्वाल, जिसे लोग दीपावली के ग्यारहवें दिन, यानी कार्तिक शुक्ल एकादशी को पूरे उत्साह और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाते हैं।

[ez-toc] इस वर्ष कब मनाई जाएगी इगास बग्वाल, 2025 में कब है बूढ़ी दिवाली बल्द त्यौहार

आपको बता दें कि कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को देवोत्थान एकादशी या देव‌उठनी एकादशी और हरिबोधनी एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह की चिरनिंद्रा से जागते हैं और इसी के साथ शादी विवाह आदि मांगलिक कार्यों का दौर भी शुरू हो जाता है। इस वर्ष 2 नवंबर को जहां समूचे देश में देवोत्थान एकादशी की धूम मचेगी वहीं उत्तराखंड में भी इगास बग्वाल और बूढ़ी दिवाली पर्व पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाएगा।
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[ez-toc] क्यों कहते हैं इसे बूढ़ी दिवाली?

स्थानीय लोककथाओं के अनुसार जब भगवान श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे, तो देशभर में उसी दिन दीपों का पर्व मनाया गया। लेकिन उस समय यह समाचार गढ़वाल क्षेत्र तक देर से पहुंचा। जब लोगों को श्रीराम के लौटने की खबर मिली, तो उन्होंने 11 दिन बाद दीप जलाकर उसी हर्ष में दिवाली मनाई। तभी से इस पर्व को “बूढ़ी दिवाली” या “इगास बग्वाल” के नाम से जाना जाने लगा।
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[ez-toc]वीर माधो सिंह भंडारी की वीरता से जुड़ी परंपरा

इगास केवल आस्था या धार्मिकता का प्रतीक नहीं, बल्कि यह गढ़वाल की शौर्यगाथा का भी स्मरण कराता है। लोककथाओं के अनुसार, गढ़वाल के प्रसिद्ध योद्धा वीर माधो सिंह भंडारी ने तिब्बत के राजा के खिलाफ ऐतिहासिक युद्ध लड़ा था। दीपावली के दौरान वे युद्ध में व्यस्त थे और उनकी वापसी में विलंब हुआ। गढ़वाल रियासत के लोग यह मान बैठे कि सेना युद्ध में शहीद हो गई है, इसलिए उन्होंने दीपावली नहीं मनाई। लेकिन कुछ दिन बाद जब माधो सिंह भंडारी विजयी होकर लौटे, तो राजा महिपति शाह ने इस विजय को यादगार बनाने के लिए दीपावली के 11 दिन बाद विशेष उत्सव मनाने का आदेश दिया। तभी से इगास को विजय पर्व के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई, जो आज भी उत्तराखंड की लोक पहचान का हिस्सा है।

[ez-toc]गोवंश की पूजा और लोक उत्सव का स्वरूप बल्द त्यौहार 

इगास के दिन गांवों में घरों की सफाई कर दीपक जलाए जाते हैं और गौ-पूजन का विशेष महत्व रहता है। जिस तरह गोवर्धन पूजा के दिन विशेष रूप से गायों की पूजा की जाती है उसी तरह इगास या बूढ़ी दिवाली के दिन बैलों के सींगों में तेल लगाते हैं, उन्हें फूलों की माला पहनाते हैं और स्वादिष्ट भोजन कराते हैं। कुमाऊनी क्षेत्रों में इस दिन को बल्द त्यार (बल्द त्यौहार यानी बैलों का त्योहार) के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन पशुधन के प्रति कृतज्ञता और सम्मान का प्रतीक होता है।

[ez-toc]भैलो- लोकगीत और देवी-देवताओं के जागर

गढ़वाल मंडल में इस पर्व का सबसे जीवंत हिस्सा है ‘भैलो खेलना’। इसमें ग्रामीण तिल, भंगजीरे, हिसर और चीड़ की सूखी लकड़ियों से छोटे गठ्ठर बनाकर रस्सी से बांधते हैं। पूजा के बाद इन ‘भैलो’ को जलाकर हवा में घुमाया जाता है। भैलो के साथ खेलते समय गांव में लोकनृत्य चांछड़ी और झुमेला की थाप गूंजती है।

रात होते ही गांवों में लोकगीतों की गूंज वातावरण को भक्ति और उत्सव से भर देती है। “भैलो रे भैलो, काखड़ी को रैलू, उज्यालू आलो अंधेरो भगलू” जैसे गीतों की धुन पर ग्रामीण देवी-देवताओं की आराधना करते हैं। लोग मांगल गाते हैं और गांव की सामूहिकता का संदेश देते हैं। तेज़ी से बदलती आधुनिक जीवनशैली के बीच इगास आज सिर्फ त्योहार नहीं, बल्कि अपनी जड़ों और परंपराओं से दोबारा जुड़ने का अवसर है। यह पर्व उत्तराखंड की सामूहिक भावना, आस्था, वीरता और लोकसंस्कृति की जीवंत मिसाल है। जो हर साल यह याद दिलाता है कि हमारी परंपराएं ही हमारी असली पहचान हैं।
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